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कुछ दु:ख झेलो / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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कुछ दु:ख झेलो
कुछ दु:ख ठेलो
कुछ राम भरोसे छोड़ दो।
दुख क्या बन्धु
बहती नदिया
नहीं एक तट रह पाती है।
जिधर चाहती
मुड जाती है
सुख-दुख बहा ले जाती है।
या धारा के संग बहो तुम
या धारा का मुख मोड़ दो।