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हम तो हैं कंगाल / राही मासूम रज़ा

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हम तो हैं कंगाल
हमारे पास तो कोई चीज़ नहीं
कुछ सपने हैं
आधे-पूरे
कुछ यादें हैं
उजली-मैली
जाते-जाते
आधे-पूरे सारे सपने
उजली-मैली सारी यादें
हम मरियम को दे जाएंगे

गंगोली के कच्चे घर में उगने वाला सूरज
आठ मुहर्रम की मजलिस का अफसुर्दा-अफसुर्दा हलवा
आँगन वाले नीम के ऊपर

धूप का एक शनासा टुकड़ा
गंगा तट पर
चुप-चुप बैठा
जाना-पहचाना इक लम्हा
बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई
अहमद जान के टेबल की चंचल पुरवाई

खाँ साहिब की ठुमरी की कातिल अंगड़ाई
रैन अँधेरी
डर लागे रे
मेरी भवाली की रातों की ख़ौफ़ भारी लरज़ाँ तन्हाई
छोटी दव्वा के घर की वो छोटी सी सौंधी अँगनाई
अम्मा जैसा घर का आँगन
अब्बा जैसे मीठे कमरे
दव्वा जैसी गोरी सुबहें
माई जैसी काली रातें
सब्ज़ परी हो
या शहज़ादा
सबकी कहानी दिल से छोटी
फड़के
घर में आते-आते
हर लम्हे की बोटी-बोटी
मेरे कमरे में नय्यर पर हँसने का वो पहला दौरा
लम्हों से लम्हों की क़ुरबत
लम्हों से लम्हों की दूरी
गंगोली की
गंगा तट की
ग़ाज़ी पुर की हर मजबूरी
मेरे दिल में नाच रही है
जिन-जिन यादों की कस्तूरी
धुंधली गहरी
आधी-पूरी
उजली-मैली सारी यादें
मरियम की हैं
जाते-जाते
हम अपनी ये सारी यादें
मरियम ही को दे जाएँगे

अच्छे दिनों के सारे सपने
मरियम के हैं
जाते-जाते
मरियम ही को दे जाएँगे

मरियम बेटी
तेरी याद की दीवारों पर
पप्पा की परछाई तो कल मैली होगी
लेकिन धूप
तिरी आँखों के
इस आँगन में फैली होगी