भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी बेटी के लिए-7 / प्रमोद त्रिवेदी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:29, 14 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद त्रिवेदी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> स्वाद और रस…)
स्वाद और रस के रचाव में ज़रूरी है-
ताप और आँच
और उतना ही ज़रूरी है धीरज।
फल के पकने का होता है
एक तयशुदा मौसम
धरती को अपना स्वाद व्यक्त करने में
इंतज़ार करना होता है बादल का।
हाँ, कुछ चीज़ें पेश की जा सकती है फटाफट
पर कुछ चीज़ें इन्तज़ार में ही होती हैं लज़ीज़
देखना
एक दिन बादल बरसेंगे
तुम्हारे आँगन में
और घर में घुस आएँगी
स्वाद की सौगातें