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यह मुस्कराती हुई तस्वीर / विद्याभूषण

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यह मुस्कराती हुई तस्वीर
मेरी ताउम्र हमदम नादानी पर
तरस खाती है शायद!
मेरे घर के हर कोने में
मौजूद है उसका वजूद
और वह हरदम तारी है
मेरे जेहन पर मुसलसल क़ाबिज़।

बेशुमार शब्दों के बावजूद
ज़िन्दगी का महाकोश अकूत है।
इस मेले में सभी व्यस्त हैं
किसी ने किसी जुनूनी शगल में।
सबकी अपनी भूख, अपनी प्यास।
सम्मोहक तृष्णाएँ हर मौसम में
यहाँ अभिसार करती हैं।

साँस लेने पर मिल जाती है हवा,
लेकिन क्षमाशील आकाश की छाँह
अब सुलभ नहीं है मुझे।
उमसते दिनों के जुए में जुते घोड़े
हरियाली को कैसे बचाएँगे।