भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धुंध में लिपटा हुआ साया कोई / कुमार विनोद

Kavita Kosh से
Gautam rajrishi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:44, 17 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विनोद }} {{KKCatGhazal}} <poem> धुंध में लिपटा हुआ साया क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धुंध में लिपटा हुआ साया कोई
आज़माने फिर हमें आया कोई

दिन किसी अंधे कुएँ में जा गिरा
चाँद को घर से बुला लाया कोई

चिलचिलाती धूप में तनहा शजर
बुन रहा किसके लिए छाया कोई

दुश्मनी भी एक दिन कहने लगी
दोस्ती-जैसा न सरमाया कोई

पेड़ जंगल के हरे सब हो गए
ख़्वाब आँखों में उतर आया कोई

आज की ताज़ा ख़बर इतनी-सी है
गीत चिड़िया ने नया गाया कोई

दूसरों से हो गिला क्यों कर भला
कब, कहाँ ख़ुद को समझ पाया कोई