भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नेताओं की कहानी

Kavita Kosh से
अशोक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 17 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: आडवाणी जी मंदिर बनवाओगे कब तक हिन्दुओं को यूँ ही बहलाओगे कब त…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आडवाणी जी मंदिर बनवाओगे कब तक

हिन्दुओं को यूँ ही बहलाओगे कब तक


देश की जनता इतनी नादां नहीं है

तुम अपनी रोटी पकाओगे कब तक


मनमोहन जी कुछ अपनी मन की भी कर लो

सोनिया जी की गाड़ी चलाओगे कब तक


पवार जी आपकी हर पोल है खुल चुकी

जनता कों चीनी खिलाओगे कब तक


चिदंबरम जी जनता जवाब चाहती है

आतंकवाद को जड़ से मिटाओगे कब तक


परनब बाबू अर्थवयवस्था का गुणगान करते हो

मंहगाई पर लगाम लगाओगे कब तक


माया जी आप मूर्तियों की बहुत प्रेमी हो

हाथियों की मूर्तियाँ बनवाओगे कब तक


ममता जी और लालू जी रेल के अखाड़े में

लाभ-हानि का किस्सा सुनाओगे कब तक


नितीश जी आप बात करते हो सुशासन की

बिहार से अफसरसाही मिटाओगे कब तक


पासवान जी आप गीत गाते रह गए अल्पसंख्यक की

अल्पमत की मार खुद खाओगे कब तक


इक सवाल "अशोक" देश की जनता से पूछता है

तुम लुटेरों को नेता बनाओगे कब तक