भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घराना / दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:00, 20 मार्च 2010 का अवतरण (दादी अम्मा दादी अम्मा मन जाओ / घराना का नाम बदलकर घराना / दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ कर दिया गया ह)
रचनाकार: शकील बदायूनी |
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ
छोड़ो जी ये ग़ुस्सा ज़रा हँस के दिखाओ
छोटी-छोटी बातों पे न बिगड़ा करो
ग़ुस्सा हो तो ठण्डा पानी पी लिया करो
खाली-पीली अपना कलेजा न जलाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...
दादी तुम्हें हम तो मना के रहेंगे
खाना अपने हाथों से खिला के रहेंगे
चाहे हमें मारो चाहे हमें धमकाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...
कहो तो तुम्हारी हम चम्पी कर दें
पियो तो तुम्हारे लिये हुक्का भर दें
हँसी न छुपाओ ज़रा आँखें तो मिलाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...
हमसे जो भूल हुई माफ़ करो माँ
गले लग जाओ दिल साफ़ करो माँ
अच्छी सी कहानी कोई हमको सुनाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...