भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रहने दो / अशोक वाजपेयी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:40, 20 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक वाजपेयी |संग्रह=उम्मीद का दूसरा नाम / अशोक …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उन्हें जाने दो
एक के बाद एक :
सूर्य, तारे,
विपुल पृथ्वी,
सयाना आकाश,
अबोध फूल।

मुझे रहने दो
अपने अँधेरे शून्य में,
अपने शब्दों के मौन में,
अपने होने की निराशा में।

मुझे रहने दो उपस्थित
आख़िरी अनुपस्थिति में।