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सम्हालकर / अशोक वाजपेयी

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उसकी कंचन-काया
पंखों-पंखरियों से बनी है,
उसकी निश्छल आत्मा गढ़ी गई है
पवित्र उज्ज्वलता से,
उसका प्रेम रचा है
राग के पराग से-
उसे सम्हालकर
मेरे पास लाना, देवताओ!