भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थोड़ी देर में / अशोक वाजपेयी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:46, 20 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक वाजपेयी |संग्रह=उम्मीद का दूसरा नाम / अशोक …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थोड़ी देर में अनुपस्थिति से उपस्थिति की ओर
वापसी शुरू, थोड़ी देर और
सपने और सच का वह अदम्य
झिलमिल, जिसे प्रेम कहते हैं,
फिर दीखने लगेगा जैसे हम
अन्तरिक्ष में किसी नक्षत्र को
अपने घर की तरह देख रहे हों।

वही घर है,
उसी में सुख-दुख राहत,
उसी में रोटी-पानी-नमक,
उसी के ओसारे में बैठकर
हम सुस्ताते हैं
और सोचते हैं कि चलो,
कल फिर आगे चलना शुरू करेंगे।