भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चारागर भूल गया हो जैसे / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:14, 25 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> चारागर भूल गया हो…)
चारागर भूल गया हो जैसे
अब तो मरना ही दवा हो जैसे
मुझसे बिछुड़ा था वो पहले भी मगर
अब के यह ज़ख़्म नया हो जैसे
मेरे माथे पे तेरे प्यार का हाथ
रूह पर दस्ते-सबा हो जैसे
यूँ बहुत हँस के मिला था लेकिन
दिल ही दिल में वो ख़फ़ा हो जैसे
सर छुपाएँ तो बदन खुलता है
ज़ीस्त मुफ़लिस की रिदा हो जैसे