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ख़ामोशी की गलियों में / हरकीरत हकीर

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कुछ दिन गज़ारे हैं फिर
ख़ामोशी की गलियों में
वहाँ पेड़ों की छाया नहीं थी
साँसों का भी कोई पता नहीं

बस पत्ते पैर छूते रहे....