उभयचर-23 / गीत चतुर्वेदी
नहीं यह कोई परिकथा नहीं थी
उसका धड़ घोड़े का था पूंछ श्वानों-सी लिंग था विशालकाय और दूध से भरा थन भी लटका हुआ था
वह ऐसा उभयलिंगी ख़ुद ही नर था मादा भी महान काम-क्षम वह पतली कटि का सुंदरी
वह कर्म-भीम हज़ार हाथों का काम अकेले करता दौड़ता सरपट सुपर सोनिक विमानों से तेज़ उड़ता
वह अपनी प्रजाति का पहला था जिसकी व्यापक उत्पत्ति के लिए सरकार की मंज़ूरी दरकार थी
तब तक वह एक तस्वीर में हर दीवार पर टंगा हर कंप्यूटर पर स्क्रीनसेवर बन टहलता प्रतीक्षारत
वह बीटी मानव था जेनेटिकली मॉडीफाइड मानव-प्रजाति जिसमें
सैकड़ों अनुसंधानों के बाद जीन्स की सही मात्रा मिलाई गई थी बीसियों पशुओं से निकाल
नहीं यह कोई परिकथा नहीं थी फंतासी भी नहीं विज्ञान का चमत्कार था
मनुष्यता जगाने के बजाय मेरी पशुताओं को ही जगा रहा विज्ञान और-और पशुओं को मिला रहा मुझमें
ऐसा कहूं तो क्या यह मेरा पिछड़ा हुआ ज्ञान?
फिर भी कहता हूं यह पहले से था
यह हमारी फूहड़ अभिलाषाओं की दमित प्रजाति सिर उठा मंज़ूरी मांगती प्रतीक्षारत
मैं जितना नकारता वह उतना हुंकारता