भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देश के नौजवान के सपने / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:31, 14 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद तिवारी |संग्रह=सुबह आयेगी / विनोद तिवारी }} …)
देश के नैजवान के सपने
हैं खुले आसमान के सपने
छू ही लेगा वो एक दिन आकाश
उसने देखे उड़ान के सपने
भाल ऊँचा किए निकलता है
पास हैं स्वाभिमान के सपने
अंकुरण में दिखाई पड़ते हैं
गाँव भर को किसान के सपने
गाँव से ले के वे शहर आए
रोती कपड़ा मकान के सपने
किसमे दम है जो तोड़ सकता हो
मेरे भारत महान के सपने
तीन रंग सत्य शिव औ’ सुन्दर के
देखो क़ौमी निशान के सपने