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लौटती बैलगाड़ी का गीत / एकांत श्रीवास्तव

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जब नींद में डूब चुकी है धरती
और केवल बबूल के फूलों की
महक जाग रही है
तब दूधिया चॉंदनी में
धान से लदी वह लौट रही है

लौट रहे हैं अन्‍न
बचपन बीत जाने के बाद
बचपन को याद करते

घंटियों की टुनुन-टुनुन
गॉंव की नींद तक पहुंच रही है
और सारा गॉंव
अगुवानी के लिए तैयार हो रहा है

हिल रही हैं
अलगनी में टॅंगी हुई कन्‍दीलें
और चमक रहा है गॉंव का कन्‍धा

एक मॉं के कण्‍ठ से उठ रही है लोरी
कि चॉंदी के कटोरे में भरा है दूध
और घुल रहा है बताशा

बैलगाड़ी पहुंच जाना चाहती है गॉंव
दूध में बताशे के घुलने से पहले.


--Pradeep Jilwane 10:47, 24 अप्रैल 2010 (UTC)