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बात सचमुच में निराली हो गई / नीरज गोस्वामी
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बात सचमुच में निराली हो गई
झूट जब बोला तो ताली हो गई
फेर ली जाती झुका कर थी कभी
उस शरम से आँख खाली हो गई
ये असर हम पे हुआ इस दौर का
भावना दिल की मवाली हो गई
मिल गई उनको इजाज़त ज़ुल्म की
अपनी तो फ़रियाद गाली हो गई
इक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इंसाँ तो नाली हो गई
डाल दीं भूखे को जिसमें रोटियाँ
वो समझ पूजा की थाली हो गई
हाथ में क़ातिल के नीरज फूल है
बात अब घबराने वाली हो गई