भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो छुपाकर जहाँ से रक्खा है / नीरज गोस्वामी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:40, 25 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज गोस्वामी }} {{KKCatGhazal}} <poem> देखने में मकाँ जो पक्क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखने में मकाँ जो पक्का है
दर हक़ीक़त बड़ा ही कच्चा है

ज़िंदगी कैसे प्यारे जी जाये
ये सिखाता हर एक बच्चा है

छाँव मिलती जहाँ दोपहरी में
वो ही काशी है वो ही मक्का है

जो अकेले खड़ा भी मुस्काये
वो बशर यार सबसे सच्चा है

जिसको थामा था हमने गिरते में
दे रहा वो ही हमको धक्का है

आप रब से छुपायेंगे कैसे
जो छुपाकर जहाँ से रक्खा है

जब चले राह सच की हम ‘नीरज’
हर कोई देख हक्का बक्का है