भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वतन्त्र भारत / श्यामलाल गुप्त 'पार्षद'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:47, 28 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <Poem> महर्ष…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महर्षि मोहन के मुख से निकला, स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।
सचेत होकर सुना सभी ने, स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।
रहा हमेशा स्वतन्त्र भारत, रहेगा फिर भी स्वतन्त्र भारत।
कहेंगे जेलों में बैठकर भी, स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।
कुमारि, हिमगिरि, अटक, कटक में, बजेगा डंका स्वतन्त्रता का।
कहेंगे तैतिस करोड़ मिलकर, स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।

रचनाकाल : 1922