भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बया / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
Shishirmit (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:36, 20 फ़रवरी 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बया से


बया हमारी चिडिया रानी।


तिनके लाकर महल बनाती,

ऊँची डालों पर लटकाती,

खेतों से फिर दाना लाती

नदियों से भर लाती पानी।


तुझको दूर न जाने देंगे,

दानों से आँगन भर देंगे,

और हौज में भर देंगे हम

मीठा-मीठा पानी।


फिर अंडे सेयेगी तू जब,

निकलेंगे नन्हें बच्चे तब

हम आकर बारी-बारी से

कर लेंगे उनकी निगरानी।


फिर जब उनके पर निकलेंगे,

उड जायेंगे, बया बनेंगे

हम सब तेरे पास रहेंगे

तू रोना मत चिडिया रानी।


बया हमारी चिडिया रानी।

-प्रथम आयाम


इन्दौर की छावनी में बया ही उनकी चिडिया और उसका घोंसला ही उनके लिए कला प्रदर्शनी था। वे यह जान चुकी थीं कि उसके अंडे से बच्चे निकलेंगे, फिर जब उनके पंख निकल आयेंगे वे बया बन कर उड जायेंगे। वह अकेली होकर न रोये, यह उनकी चिन्ता थी। यह महादेवी जी के बचपन की रचना है।