भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाचा / एकांत श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:28, 29 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: नचकार आये हैं, नचकार<br /> आन गॉंव के<br /> नाचा है आज गॉंव में<br /> <br /> उमंग ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नचकार आये हैं, नचकार
आन गॉंव के
नाचा है आज गॉंव में

उमंग है तन-मन में सबके
जल्‍दी रॉंध-खाकर भात-साग
दौड़ी आती हैं लड़कियॉं
औरतें, बच्‍चे और लोग इकट्ठे हैं
धारण चौरा के पास

आज खूब चलेगी दुकान बाबूलाल की
खूब रचेंगे होंठ सबके पान से
खूब फबेगी पान से रचे होंठों पर मदरस-सी बात

लड़कों के फिर मजे हैं, खड़े रहेंगे किनारे
एक-दूसरे के कंधों पर हाथ रखे
हॅंसते-छेड़ते एक-दूसरे को
कि अभी आयेगी नचकारिन
उनके हाथों से लेने को रूपैया

और थिरकेगी जैसे दूध मोंगरा की पत्‍ती
लहरायेगी जैसे बरखा की फुहार
डोलेगी जैसे पीपल का पत्‍ता
लहसेगी जैसे करन की डगाल
महकेगी जैसे मगरमस्‍त का फूल
चमकेगी जैसे बिजली
और गाज बनकर गिरेगी सबके मन पर

जब तक उग न जाये सुकवा
फूट न जाये पूरब में रक्तिम आलोक
तब तक गैसबत्‍ती और बिजली का
मिला-जुला उजाला रहेगा
मिले-जुले मन

उत्‍सव-सी बीतेगी रात
नाचा है आज गॉंव में.