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चूड़ियाँ / एकांत श्रीवास्तव
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चूडियॉं
मॉं के हाथ की
बजती हैं सुबह-शाम
जब छिन चुका है
पत्तियों से
उनका संगीत
जब सूख चुका है
नदी का कण्ठ
और भूल चुकी है वह
बीते दिनों का जल-गीत
जब बची नहीं
बांसुरी की कोख में
एक भी धुन
जो उठे कल के सपनों में
चूडियॉं
मॉं के हाथ की
बजती हैं सुबह-शाम
इनमें है
परदेश गये पिता की
स्मृतियों की खनक
जो बनाये रखती है
घर को घर
यह कैसी कार्यवाही है
सन्नाटे के विरूद्ध
जो सुनी जा सकती है
जानी जा सकती है
लेकिन रोकी नहीं जा सकती.