भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यूँ प्यार को आज़माना नहीं था / श्रद्धा जैन

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:44, 29 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= श्रद्धा जैन }} {{KKCatGhazal}} <poem> दूरी को अपनी बढ़ाना नहीं …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूरी को अपनी बढ़ाना नहीं था
यूँ प्यार को आज़माना नहीं था

उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था

चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था

दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था

उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था