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खाली दिन / एकांत श्रीवास्तव

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पिछली रात
टूटे हुए स्‍वप्‍न के आघात से
आरम्‍भ होते हैं खाली दिन

कैलेण्‍डर में
कोई नाम नहीं होता खाली दिनों का
न सोम न मंगल
कोई तारीख नहीं होती खाली दिनों की
न दस न सञह

बिना अंगूठे वाली चप्‍पल की तरह
घिसटते रहते हैं खाली दिन
हमारे साथ-साथ

हम घड़ी देखते हैं
और हमें कोई जल्‍दी नहीं होती
हम तैयार होते हैं
और हमें कहीं पहुंचना नहीं होता

हम दिन भर उड़ते हैं
खाली दिन के समुद्र के ऊपर
और अंत में तट पर लौट आते हैं

आधी चाय और एक पान के लायक
कुछ सिक्‍कों को अपनी मुट्ठी में दबाये
हम अक्‍सर सोचते हैं
कि अब बदल देने चाहिए खाली दिनों के पहिये.