भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मयक़दा सबका है सब हैं प्यासे / ज़फ़र गोरखपुरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:15, 1 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = ज़ैदी जाफ़र रज़ा }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> मयक़दा सबका है सब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मयक़दा सबका है सब हैं प्यासे यहाँ
मय बराबर बटे चारसू दोस्तो
चंद लोगों की ख़ातिर जो मख़सूस हों
तोड़ दो ऐसे जामो-सुबू दोस्तो!