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मयक़दा सबका है सब हैं प्यासे / ज़फ़र गोरखपुरी
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मयक़दा सबका है सब हैं प्यासे यहाँ
मय बराबर बटे चारसू दोस्तो
चंद लोगों की ख़ातिर जो मख़सूस हों
तोड़ दो ऐसे जामो-सुबू दोस्तो!