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कविता की ज़रूरत-1 / एकांत श्रीवास्तव

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सबसे पहले
सारस के पंखों-सा
दूधिया कोरा कागज दो
फिर एक कलम
जिसकी स्‍याही में घुला हो
असंख्‍य काली रातों का अंधकार

थोड़ी-सी आग गोरसी की
थोड़ा-सा धुआं
थोड़ा-सा जल आंखों का
जो सपनों की जड़ों में भी बचा हो मुझे दो
कविता लिखने के लिए

हजारों झुके सिरों के बीच
एक उठा हाथ
हजारों रूंधे कंठों के बीच
एक उठती चीख
हजारों रूके पांवों के बीच
एक आगे बढ़ता पांव

एक स्‍ञी की हंसी
एक बच्‍ची की जिद
एक दोस्‍त की धौल
और लहसुन की महक से भरा
एक घर मुझे दो
कविता लिखने के लिए

एक कांस का फूल
जो गांव के माथ पर
सजा हो
एक चिडिया की आवाज
जो कंवार-कार्तिक में
सुनायी देती है
एक किसान का मन
जो लुवाई के समय प्रसन्‍न हो

मुझे वसन्‍त की खुशबू से भरी
पूरी पृथ्‍वी दो
कविता लिखने के लिए.