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नागरिक व्यथा / एकांत श्रीवास्तव
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किस ऋतु का फूल सूँघूँ
किस हवा में साँस लूँ
किस डाली का सेब खाऊँ
किस सोते का जल पियूँ
पर्यावरण वैज्ञानिकों! कि बच जाऊँ
किस नगर में रहने जाऊँ
कि अकाल न मारा जाऊँ
किस कोख से जनम लूँ
कि हिन्दू न मुस्लिम कहलाऊँ
समाज शास्ञियों! कि बच जाऊँ
किस बात पर हँसूँ
किस बात पर रोऊँ
किस बात पर समर्थन
किस पर विरोध जताऊँ
हे राजन! कि बच जाऊँ
गेंदे के नाजुक पौधे-सा
कब तक प्राण बचाऊँ
किस मिट्टी में उगूँ
कि नागफनी बन जाऊँ
प्यारे दोस्तों! कि बच जाऊँ