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हमारे बच्चे / परमेन्द्र सिंह

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हमारे बच्चे भी चलते हैं ठुमक-ठुमक
उनकी भी पैंजनियाँ मधुर बजती हैं

हमारे बच्चे भी चुराकर करते हैं तिलगुड़ी
हमारे बच्चे भी तोड़ते हैं खिलौने, सलेट, धनुष

मगर हमारे बच्चों की लीलाएँ देखकर
कवि उपमाएँ नहीं गढ़ते
देवता पुष्पवर्षा नहीं करते।