भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 11 / नवीन सागर
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 3 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |संग्रह=नींद से लम्बी रात / नवीन सागर…)
एक तरफ का मतलब नहीं
हर तरु जाते नहीं बना
अपने पास खड़े रह जाने में
समय गया.
जब कहीं मुझे होना था तब
मुझे हर तरफ चलना था एक साथ
मैं घड़ी में कॉंटे की जगह चला
घर पुराना वीरान
उसी में पीली दीवार पर
अविराम टिक् टिक्! टिक् टिक्!