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मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 25 / नवीन सागर
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पक्षी आसमान में जहॉं ओझल हुआ
वहॉं से देखना है दूर!
मुझे उड़ने का अनुभव है
याद है मुझे बस्ती के ऊपर से गुजरना
ऊपर के विराट अंधकार में धीरे-धीरे उठना
पहाड़ों के कंधे याद हैं!
धूप में चिलकती चट्टनों पर
मेरी परछाईं
अभी पूरी धरती पर मंडराती है
सागर पार किसी कोटर में
हिलता है मेरा आभास.
जहॉं छूट गया हूं
वहॉं मेरा वह एक और जीवन है
उसका समय है
वहॉं से देखना है दूर!