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बचते-बचते थक गया / नवीन सागर
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दिन रात लोग मारे जाते हैं
दिन रात बचता हूं
बचते-बचते थक गया हूं
न मार सकता हूं
न किसी लिए भी मर सकता हूं
विकल्प नहीं हूं
दौर का कचरा हूं
हत्या का विचार
होती हुई हत्या देखने की लालसा में छिपा है
मरने का डर सुरक्षित है
चाल ढाल में उतर गया है
यह मेरी अहिंसा है बापू!
आप कहेंगे
इससे अच्छा है कि मार दो
या मारे जाओ.
किसे मार दूं
मारा किस से जाऊं
आह! जीवन बचे रहने की कला है.