भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भगवान कोई नहीं है / नवीन सागर

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:42, 6 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |संग्रह=नींद से लम्बी रात / नवीन सागर }}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिसका कोई नहीं है
उसका भगवान है
क्‍योंकि भगवान कोई नहीं है.

वह बूढ़ी स्‍त्री कठिन चढ़ाई चढ़ती हुई
भूली हुई भगवान को
उसी की ओर बढ़ती हुई
कहीं नहीं
जा रही है
जो उसका भगवान है
किसी और का नहीं
कोई और उसके भगवान को मिटा रहा है
बूढ़ी स्‍त्री इससे बेखबर जा रही है.

उसे दुख मिटा रहे हैं वह मिटती हुई
कहती हुई भगवान से
बुदबुदाती
घर आ रही है.

दूर पहाड़ी पर प्राचीन मंदिर
और प्राचीन हो रहा है
उस धुंधले अंधेरे
पेड़ों के झुरमुट के पास
धूल में चींटियों कीड़ों में कहीं
सका भगवान सो रहा है
मंदिर में उसकी सूनी जगह को घूरता हुआ
मंदिर खड़ा है
गांव में सब सो रहे हैं
उनकी नींद का मौन गाना है रात.