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मुस्कान / बेढब बनारसी
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आज प्रिये क्यों मुस्काती हो
ऐसी मृदुल हँसी छाई है
ऊषा जिसकी परछाँई है
क्या है आज ! हास्यमय नयनों की रस-प्याली छलकाती हो
पत्र बुलाने को क्या माँ का
या फ्रीपास किसी सिनेमाका
पास तुम्हारे आया है, पर मुझे नहीं तुम बतलाती हो
किसी पत्र में चित्र छपा क्या
जंपर कोई नया नपा क्या
हो प्रसन्न, भोजन कर जैसे ब्राह्मण, भूखा देहाती, हो
बनवाना है गहना कोई
मनवाना है कहना कोई
तरल हंसी अधरों में भरकर क्यों अधरों को ललचाती हो
सभानेत्री चुनी गयी हो
क्रासवर्ड में प्रथम हुई हो
बोलो हम भी करें पान रस जिसकी सरिता लुढ़काती हो