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अनर्गल संवाद / लीलाधर मंडलोई

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कोई एक अनुपस्थित है अपनी जगह
कोई एक दोस्‍तों के बीच नहीं
कोई एक स्‍मृतियों से दूर फेंका हुआ
कोई एक भीड़ में एकदम अकेला
कोई एक बीच समुद्र प्‍यास में छटपटाता
कोई एक चांद के झरने में आग से भागता
कोई एक सूखी नदी में जलमग्‍न
कोई एक किताबों के बीच बारूद रखता
कोई एक न्‍यायालय में हत्‍यारों से कहता-'वंदे मातरम्'
कोई एक खून का रंग पीला हुआ की रपट लिखाता
सदी के अंत की यह कोई पटकथा नहीं
घट रहा है अभी मुखातिब हूं जब
तब सुविधा के लिए यह मानकर खारिज कर सकते हैं
देर रात नशे में धुत्‍त आदमी का
अपने से किया जा रहा अनर्गल संवाद है बस.