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छिपाकर रखी जा सकें चीजें / लीलाधर मंडलोई
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थोड़ी बहोत होती हैं हरेक में
कि छिपाकर रखी जा सकें चीजें
वे किसी और के लिए नहीं
जरूरी न हों तो अपने वास्ते भी नहीं
कौन महात्मा है
कौन न्यायविद
तय करना दूभर
दुष्ट बाजवक्त करते हैं कम ओछी हरकत
कि जितनी करते हैं महात्मा-न्यायविद्
यह चर्चा की वस्तु नहीं
सपाट ओछी निंदा है
ओछेपन को ढांपने की
एक और निंदनीय हरकत
तुम्हारी आवाज हंसते हुए ओछी हो रही है.