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इंतज़ार / तलअत इरफ़ानी
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:22, 16 मई 2010 का अवतरण
वोह सारे खुश्क पत्ते
जो हमारे पाँव के नीचे
कुचल कर चीख उठठे थे,
मुझे उनकी सदायें,
नज़्म करने के लिए कहकर
गजरदम की गयीं, तुम
शाम तक वापिस नहीं लौटीं
तो मैं दिन भर की यह लिख्खी हुयी नज़्में
भला किसको सुनाऊँगा?
किसे कैसे बताऊंगा ?
कि मौसम खुशक पत्तों का नही
फूलों की आमद है।