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’हैमलेट’ को पढ़ते हुए-1 / आन्ना अख़्मातवा

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कब्रों के पास का इलाका धूलभरा और गर्म था
पीछे नदी - नीली और ठण्डी,
तुमने मुझसे कहा - "किसी गिरजाघर में चली जाओ
या शादी कर लो किसी बेवकूफ़ से ..."

ऐसे ही बोला करते हैं राजकुमार - अपनी भयंकर निर्विकार आवाज़ में
मगर इन छोटे से शब्दों को संजो कर धरा हुआ है मैंने
काश ये शब्द बहते रहें चमकते रहें हज़ारों साल
जैसे कन्धों पर होता है फ़र का लबादा।


अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह