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पुस्तक का समर्पण / रघुवीर सहाय

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अपने उस अकेलेपन को
जो भय और साहस के बीच
कभी कभी
वहाँ मिला करता है जहाँ
कोई जीवित मित्र आ नहीं पाता
सिर्फ़ उनकी याद आ सकती है
जो ठीक उसी जगह मारे गए थे