Last modified on 17 मई 2010, at 11:06

प्रेम में पड़ी लड़की-1 / प्रदीप जिलवाने

Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:06, 17 मई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रेम में पड़ी लड़की
ठीक से अपनी रोटियाँ भी नहीं बेल पाती
अक्सर भूल जाती है
दाल में नमक
चाय में चीनी

मिलते ही एकान्त
ताकने लगती है शून्य
जैसे उपस्थित हो वहीं
रोशनी का समन्दर/गुहा
जिसमें डूबकर/पार कर ही
मिल सकती है
अपनी धरती
अपना आकाश।