भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:35, 19 मई 2010 का अवतरण ("वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम,
पिला, खिला दे मोह म्लान मन,
अपलक लोचन, उन्मद यौवन,
फूल ज्वाल दीपित हो मधुवन!
जंगम यह जग, दुर्गम अति मग,
उर के दृग, प्रिय साक़ी, दे रँग!
मदिरारुण मुख हो दृग सन्मुख
रुक ना जाँय जब तक डगमग पग!