भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस धूप की नयी रंगत / अलका सर्वत मिश्रा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 19 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अलका सर्वत मिश्रा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ये दो फूल …)
ये दो फूल
जिनमें खो जाते हैं हम अक्सर
हमें इस कदर लुभाते हैं
कि हम भूल जाते हैं,
इन्हें मिल जाना है
मिट्टी में ही
ये खिलेंगे मगर
उपवन में ही
हम कितना भी कर लें जतन
समर्पित कर दें अपना जीवन
तन-मन-धन
और गृह वन
सिर्फ़ इनकी एक मुस्कान के लिए
किन्तु
परन्तु
व्यर्थ है सारी लगन
सूना ही लगता है अपना आँगन
और
तरसते हैं हमारे कर्ण
इनकी खिलखिलाहट के लिए