भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे प्रेम चाहिए / नीलेश रघुवंशी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:52, 19 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलेश रघुवंशी |संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी …)
मुझे प्रेम चाहिए
घनघोर बारिश-सा।
कड़कती धूप में घनी छाँव-सा
ठिठुरती ठंड में अलाव-सा प्रेम चाहिए मुझे।
उग आए पौधों और लबालब नदियों-सा
दूर तक फैली दूब
उस पर छाई ओस की बूँदों-सा।
काले बादल में छिपा चांद
सूरज की पहली किरण-सा
प्रेम चाहिए।
खिला-खिला लाल गुलाब-सा
कुनमुनाती हँसी-सा
अँधेरे में टिमटिमाती रोशनी-सा प्रेम चाहिए।
अनजाना अनचीन्हा अनबोला-सा
पहली नज़र-सा प्रेम चाहिए मुझे।
ऊबड़-खाबड़ रास्तों से मंज़िल तक पहुँचाता
प्रेम चाहिए मुझे।
मुझे प्रेम चाहिए
सारी दुनिया रहती हो जिसमें
प्रेम चाहिए मुझे।