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हृदय जो सदय प्रणय आगार / सुमित्रानंदन पंत
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हृदय जो सदय, प्रणय आगार,
भक्त, उस उर पर कर अधिकार!
न मंदिर मसजिद के जा द्वार
न जड़ काबे पर तन मन वार!
अगर ईश्वर को कुछ स्वीकार
हृदय जो सदय, प्रणय आगार!
हृदय पर यदि न तुझे अधिकार
भक्त, पी अमर प्रणय मधु धार!