चपल पलक से कुटिल अलक से
बिंध बँध कर होना हत मूर्छित,
सतत मचलना, वृत्ति बदलना
हृदय, तुम्हारा यदि स्वभाव नित!
फिर अंतिम क्षण तजना प्रिय तन
प्राण, तुम्हारा अगर यही प्रण,
विधि ने क्यों कर तो प्रिय सहचर
मुझे दिये—जीवन, नव यौवन?
चपल पलक से कुटिल अलक से
बिंध बँध कर होना हत मूर्छित,
सतत मचलना, वृत्ति बदलना
हृदय, तुम्हारा यदि स्वभाव नित!
फिर अंतिम क्षण तजना प्रिय तन
प्राण, तुम्हारा अगर यही प्रण,
विधि ने क्यों कर तो प्रिय सहचर
मुझे दिये—जीवन, नव यौवन?