भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वन माला में जो गुल लाला / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:39, 22 मई 2010 का अवतरण ("वन माला में जो गुल लाला / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वनमाला में जो गुल लाला
लहरा रहा अनल ज्वाला सम,
रुधिर अरुण था किसी तरुण
वह तरुण तुल्य नृप सुत का निरुपम!
नील नयन में फँसा रहा मन
फूल बनफ़शा जो चिर सुंदर,
वह मयंक में चारु अंक सा
तिल निशंक था तरुणी मुख पर!