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प्रस्ताव / दिनकर कुमार

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पारित करो घृणा का प्रस्ताव
सामूहिक रूप से बजाओ ताली
जो सपनों की याद में क़ब्रगाह बनते हैं
वहाँ कोई नहीं जाता अर्पित करने
भावभीनी श्रद्घांजलि या फूलों का गुच्छा
न ही जिक्र होता है सपनों का

आओ हम एक मिनट का मौन रखें
और भीतर एक प्रार्थना दुहराएँ
कि मुक्त हो हृदय धीरे-धीरे
विकृतियों से कुँठाओं से
निराशा के खरोचों से प्रतिहिंसा की आग से
मुक्त हो हृदय काले अतीत से

और अब कृतज्ञता व्यक्त करनी है
एक-एक अपरिचित चेहरे को याद करना है
धन्यवाद कि आपने विरोध किया
धन्यवाद कि आपने अफ़वाहें फैलाई
धन्यवाद कि आपने रोड़े अटकाए
धन्यवाद कि आपने मुझसे घृणा की