भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भय जब दस्तक देता है / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:54, 24 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=कौन कहता है ढलती नहीं ग़म क…)
भय जब दस्तक देता है
शयनकक्ष में
रातभर जागता है विवेक
चिड़ियों की तरह
लोग बुनते हैं घोंसले
बच्चों को सिखाते हैं
दाने चुगना
धूप और बारिश
की मार झेलते हुए
एक स्वतंत्र देश में
ग़ुलाम बनकर जीते हुए
दैत्यों के चरणों में
शीश झुकाते हुए
मतपेटियों में अँगूठा काटकर
बंद करते हुए
लोग
ईश्वर और भाग्य को
दोष देते हैं
जन्मकुंडली के ऊपर
कुंडली मार कर बैठे
शनि और राहु को
कोसते हैं
नीलम-गोमेद-पन्ना-पुखराज
घोड़े के नाल की
अँगूठी पहनते हैं
भय जब दस्तक देता है
कायर दिमाग सोचता है
पलायन का रास्ता