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भय जब दस्तक देता है / दिनकर कुमार

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भय जब दस्तक देता है
शयनकक्ष में
रातभर जागता है विवेक
चिड़ियों की तरह
लोग बुनते हैं घोंसले
बच्चों को सिखाते हैं
दाने चुगना

धूप और बारिश
की मार झेलते हुए
एक स्वतंत्र देश में
ग़ुलाम बनकर जीते हुए
दैत्यों के चरणों में
शीश झुकाते हुए
मतपेटियों में अँगूठा काटकर
बंद करते हुए

लोग
ईश्वर और भाग्य को
दोष देते हैं
जन्मकुंडली के ऊपर
कुंडली मार कर बैठे
शनि और राहु को
कोसते हैं
नीलम-गोमेद-पन्ना-पुखराज
घोड़े के नाल की
अँगूठी पहनते हैं

भय जब दस्तक देता है
कायर दिमाग सोचता है
पलायन का रास्ता