भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परंपरा / रामधारी सिंह "दिनकर"
Kavita Kosh से
Ramesh Mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:55, 24 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem> परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो | उसमे बहुत कुछ है, जो जीवित है, जी…)
परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो |
उसमे बहुत कुछ है,
जो जीवित है,
जीवन दायक है,
जैसे भी हो,
ध्वसं से बचा सकता है|