भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूर गगन में तारा टूटा / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:01, 25 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= कविता / गुलाब खंडेलवाल }} …)
अंधकार ने मुँह फैलाया
सूनापन डँसने को आया
नहीं समझ पाया था कुछ भी वह कि काल ने आकर लूटा
व्योम-पटी पर वह अभिमानी
लिख करुणा की अमर कहानी
एक और चल दिया क्षितिज में जैसे भाग्य किसी का रूठा
फूलों ने आँसू बरसाए
विरह-गीत कोयल ने गाये
दुखिया रजनी के अंतर से नीरव दुखोछ्वास-सा छूटा
दूर गगन में तारा टूटा