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चाँदनी वन के बीच खिली / गुलाब खंडेलवाल
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चाँदनी वन के बीच खिली
सकुच नयन-पंखुड़ियाँ मींचे
खड़ी आम्र के तरु के नीचे
हँसती हुई मिली
पलकें उठीं, मिले युग लोचन
झुके अधर, थर-थर काँपा तन
कूक उठी पिक, गूँजा मधुवन
शाखा तनिक हिली
प्रथम मिलन-परिणय-मधु -पूरित
हुई विदा जब प्रात मंद-स्मित
अरुण कपोलों पर थी अंकित
प्रेम-भेंट पहली
चाँदनी वन के बीच खिली