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जय हो / गुलाब खंडेलवाल

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जय हो

दुःख पर सुख, तम पर प्रकाश की
जड़ता पर गति की, विकास की
मरण-त्रास पर मनुज-श्वास की
आग्नि-शिखा अक्षय हो

निज पर पर, नर पर नरत्व की
पंचतत्व पर आत्म-सत्व की
घन-महत्त्व पर जन-समत्व की
संघ-शक्ति का भय हो

कुटिल असुन्दर पर सुन्दर की
पवि कठोर पर कोमल कर की
प्रलय-क्षितिज पर विश्वंभर की
नव-ज्योति का उदय हो
जय हो!